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Showing posts from June, 2018

समर शेष है - रामधारी सिंह दिनकर

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ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो , किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो? किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से, भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से? कुंकुम? लेपूं किसे? सुनाऊँ किसको कोमल गान? तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान । फूलों के रंगीन लहर पर ओ उतरनेवाले ! ओ रेशमी नगर के वासी! ओ छवि के मतवाले! सकल देश में हालाहल है, दिल्ली में हाला है, दिल्ली में रौशनी, शेष भारत में अंधियाला है । मखमल के पर्दों के बाहर, फूलों के उस पार, ज्यों का त्यों है खड़ा, आज भी मरघट-सा संसार । वह संसार जहाँ तक पहुँची अब तक नहीं किरण है  जहाँ क्षितिज है शून्य, अभी तक अंबर तिमिर वरण है  देख जहाँ का दृश्य आज भी अन्त:स्थल हिलता है  माँ को लज्ज वसन और शिशु को न क्षीर मिलता है  पूज रहा है जहाँ चकित हो जन-जन देख अकाज  सात वर्ष हो गये राह में, अटका कहाँ स्वराज?  अटका कहाँ स्वराज? बोल दिल्ली! तू क्या कहती है?  तू रानी बन गयी वेदना जनता क्यों सहती है?  सबके भाग्य दबा रखे हैं किसने अपने कर में?  उतरी थी जो विभा, हुई बंदिनी बता किस घर में  समर शेष है, यह प्रकाश बंदीगृह से छूटेगा  और

सरफरोशी की तमन्ना

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जन्म जयंती पर शत-शत नमन रामप्रसाद बिस्मिल जी【  (११ जून १८९७-१९ दिसम्बर १९२७)  भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन  की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख  सेनानी  थे, जिन्हें ३० वर्ष की आयु में  ब्रिटिश सरकार  ने  फाँसी  दे दी। वे मैनपुरी षड्यन्त्र व काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में शामिल थे तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे।】 सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है? वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आस्माँ!हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है? एक से करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत,देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है। रहबरे-राहे-मुहब्बत! रह न जाना राह में, लज्जते-सेहरा-नवर्दी दूरि-ए-मंजिल में है। अब न अगले वल्वले हैं और न अरमानों की भीड़,एक मिट जाने की हसरत अब दिले-'बिस्मिल' में है । ए शहीद-ए-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चर्चा गैर की महफ़िल में है। खींच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद, आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है। सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-का

देवल आशीष की कुछ कविताये उनकी पुण्यतिथि(04 जून) पर

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देवल आशीष की कुछ कविताएं प्रिये तुम्हारी सुधि को प्रिये, तुम्हारी सुधि को मैंने, यूँ भी अक्सर चूम लिया तुम पर गीत लिखा, फिर उसका, अक्षर- अक्षर चूम लिया मैं क्या जानूँ मंदिर-मस्जिद, गिरजा या गुरुद्वारा जिनपर पहली बार दिखा था, अल्हड़ रूप तुम्हारा मैंने उन पावन राहों का, पत्थर-पत्थर चूम लिया हम तुम उतनी दूर धरा से, नभ की जितनी दूरी फिर भी हमने साध मिलन की, पल में कर ली पूरी मैंने धरती को दुलराया, तुमने अम्बर चूम लिया एक बार जीवन में एकबार जीवन में प्यार कर लो प्रिये  लगती हो रात में प्रभात की किरन सी किरन से कोमल कपास की छुअन सी छुअन सी लगती हो किसी लोकगीत की लोकगीत जिसमें बसी हो गंध प्रीत की प्रीत को नमन एक बार कर लो प्रिये प्यार ठुकरा के मत भटको विकल सी विकल ह्रदय में मचा दो हलचल सी हलचल प्यार की मचा दो एक पल में एक पल में ही खिल जाओगी कमल सी प्यार के सलोने पंख बाँध लो सपन में सपन को सजने दो चंचल नयन में नयन झुका के अपना लो किसी नाम को किसी नाम को बसा लो तन-मन में मन पे किसी के अधिकार कर लो प्रिये प्यार है पवित्र पुंज, प्यार पुण्यधाम है पुण्यधाम जिसमें कि राधिका है श्