Posts

Showing posts from April, 2018

मैं शून्य पे सवार हूं

मैं शून्य पे सवार हूँ बेअदब सा मैं खुमार हूँ अब मुश्किलों से क्या डरूं मैं खुद कहर हज़ार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ उंच-नीच से परे मजाल आँख में भरे मैं लड़ रहा हूँ रात से मशाल हाथ में लिए न सूर्य मेरे साथ है तो क्या नयी ये बात है वो शाम होता ढल गया वो रात से था डर गया मैं जुगनुओं का यार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ भावनाएं मर चुकीं संवेदनाएं खत्म हैं अब दर्द से क्या डरूं ज़िन्दगी ही ज़ख्म है मैं बीच राह की मात हूँ बेजान-स्याह रात हूँ मैं काली का श्रृंगार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ हूँ राम का सा तेज मैं लंकापति सा ज्ञान हूँ किस की करूं आराधना सब से जो मैं महान हूँ ब्रह्माण्ड का मैं सार हूँ मैं जल-प्रवाह निहार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ –  ज़ाकिर ख़ान   Gaurav Dubey

विश्व पुस्तक दिवस 23 अप्रैल।

Image
किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से  बड़ी हसरत से तकती हैं महीनों अब मुलाकातें नहीं होती जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थीं अब अक्सर गुज़र जाती है कम्प्यूटर के पर्दों पर बड़ी बेचैन रहती हैं क़िताबें उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है जो कदरें वो सुनाती थी कि जिनके  जो रिश्ते वो सुनाती थी वो सारे उधरे-उधरे हैं कोई सफा पलटता हूँ तो इक सिसकी निकलती है कई लफ्ज़ों के मानी गिर पड़े हैं बिना पत्तों के सूखे टुंड लगते हैं वो अल्फ़ाज़ जिनपर अब कोई मानी नहीं उगते जबां पर जो ज़ायका आता था जो सफ़ा पलटने का अब ऊँगली क्लिक करने से बस झपकी गुजरती है किताबों से जो ज़ाती राब्ता था, वो कट गया है कभी सीने पर रखकर लेट जाते थे कभी गोदी में लेते थे कभी घुटनों को अपने रिहल की सूरत बनाकर नीम सजदे में पढ़ा करते थे, छूते थे जबीं से वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल और महके हुए रुक्के किताबें मँगाने, गिरने उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे उनका क्या होगा वो शायद अब नही होंगे!!                                                                              

भगवान परशुराम जयंती(अक्षय तृतीया)

Image
परशुराम   त्रेता युग  (रामायण काल) के एक मुनि थे। उन्हें  भगवान विष्णु  का  छठा अवतार  भी कहा जाता है । पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि  जमदग्नि  द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज  इन्द्र  के वरदान स्वरूप पत्नी  रेणुका  के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। पितामह  भृगु  द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और  शिवजी  द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि  विश्वामित्र  एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि  कश्यप  से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर  कैलाश गिरिश्रृंग  पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें  श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें