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Showing posts from May, 2018

दुष्यंत कुमार की 10 बेहतरीन कविताएं और गज़ल

#1: कुंठा – दुष्यंत कुमार मेरी कुंठा रेशम के कीड़ों-सी ताने-बाने बुनती, तड़प तड़पकर बाहर आने को सिर धुनती, स्वर से शब्दों से भावों से औ’ वीणा से कहती-सुनती, गर्भवती है मेरी कुंठा –- कुँवारी कुंती! बाहर आने दूँ तो लोक-लाज मर्यादा भीतर रहने दूँ तो घुटन, सहन से ज़्यादा, मेरा यह व्यक्तित्व सिमटने पर आमादा। #2: चीथड़े में हिन्दुस्तान – दुष्यंत कुमार एक गुडिया की कई कठपुतलियों में जान है, आज शायर ये तमाशा देख कर हैरान है। ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए, यह हमारे वक्त की सबसे सही पहचान है। एक बूढा आदमी है मुल्क में या यों कहो, इस अँधेरी कोठारी में एक रौशनदान है। मस्लहत-आमेज़ होते हैं सियासत के कदम, तू न समझेगा सियासत, तू अभी नादान है। इस कदर पाबंदी-ए-मज़हब की सदके आपके जब से आज़ादी मिली है, मुल्क में रमजान है। कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए, मैंने पूछा नाम तो बोला की हिन्दुस्तान है। मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूँ, हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है। #3: तुमको निहरता हूँ सुबह से ऋतम्बरा – दुष्यंत कुमार

मुनव्वर राना की 10 ग़ज़लें।

#1: आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए – मुनव्वर राना आप  को  चेहरे  से  भी  बीमार  होना  चाहिए इश्क़  है  तो  इश्क़  का  इज़हार  होना  चाहिए आप  दरिया  हैं  तो  फिर  इस  वक़्त  हम  ख़तरे  में  हैं आप  कश्ती  हैं  तो  हम  को  पार  होना  चाहिए ऐरे-ग़ैरे  लोग  भी  पढ़ने  लगे  हैं  इन  दिनों आप  को  औरत  नहीं  अख़बार  होना  चाहिए ज़िंदगी  तू  कब  तलक  दर-दर  फिराएगी  हमें टूटा-फूटा  ही  सही  घर-बार  होना  चाहिए अपनी  यादों  से  कहो  इक  दिन  की  छुट्टी  दे  मुझे इश्क़  के  हिस्से  में  भी  इतवार  होना  चाहिए #2: अच्छा हुआ कि मेरा नशा भी उतर गया – मुनव्वर राना अच्छा  हुआ  कि  मेरा  नशा  भी  उतर  गया तेरी  कलाई  से  ये  कड़ा  भी  उतर  गया वो  मुतमइन  बहुत  है  मिरा  साथ  छोड़  कर मैं  भी  हूँ  ख़ुश  कि  क़र्ज़  मिरा  भी  उतर  गया रुख़्सत  का  वक़्त  है  यूँही  चेहरा  खिला  रहे मैं  टूट  जाऊँगा  जो  ज़रा  भी  उतर  गया बेकस  की  आरज़ू  में  परेशाँ  है  ज़िंदगी अब  तो  फ़सील-ए-जाँ  से  दिया  भी  उ

मेरे भाई, जाओ पहले इस्लाम का "साइन" लेकर आओ!

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मेरे भाई, जाओ पहले इस्लाम का "साइन" लेकर आओ! __________________________________________________ मैं भी तुम जैसा ही सेकुलर हूं, मेरे सेकुलर भाई, लेकिन मैंने अकेले सेकुलर नहीं होना, मैंने सबसे पहले सेकुलर नहीं होना! मैं सेकुलर हूं बशर्ते इस्लाम भी सेकुलर हो, और माशाअल्ला हर लिहाज़ से सेकुलर हो! मैं चाहता हूँ के समाज के तौरतरीक़ों पर से मज़हब की जकड़बंदी छूटे और "सिविल क़ानूनों" को मज़हबी क़ायदों से आज़ाद कराया जाए, बशर्ते इस्लाम भी वैसा करे! तुम चाहते हो कि "जेंडर इक्वैलिटी" हो और औरतों को उनके हक़ मिलें, तुमसे ज़्यादा मैं वैसा चाहता हूँ, लेकिन मैं इस्लाम में भी वैसा चाहता हूँ! मुसलमान औरतों की बेहतरी के लिए छेड़ो ना एक मुहिम, मेरे सेकुलर भाई! चलो, दक़ियानूसी किताबों को जलाएं, लेकिन "मनुस्मृति" ही क्यूं जलाएं, "शरीयत" क्यूँ ना जलाएं? चलो, "महिषासुर" की उपासना करें, लेकिन उससे पहले क्यूँ ना "इब्लीस" को सिजदा करें और बदल दें हमारे पत्थरों का रुख़, जिन पर लिक्खा था : "शैतान के लिए!" आओ, हम "मज